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फसलों में कीट और रोग का खतरा बढ़ा, कृषि विभाग ने दिए बचाव के सुझाव,पढ़े पूरी खबर,,,,,

सारंगढ
लगातार हो रही बारिश से जहां किसानों के चेहरों पर अच्छी फसल की उम्मीद की चमक है, वहीं मौसम में बढ़ती नमी और उमस धान की फसलों के लिए खतरे की घंटी बनती जा रही है। कृषि विभाग ने किसानों को सतर्क रहने और फसल को कीट एवं रोगों से बचाने के लिए जरूरी उपाय अपनाने की सलाह दी है।

नमी और उमस बढ़ा रही रोगों का खतरा**

अधिक वर्षा से वातावरण में नमी और बाद में तेज धूप से उमस की स्थिति बन रही है। ऐसी परिस्थितियों में धान की फसलों पर भूरा माहू, पेनिकल माइट, गंधी बग जैसे कीट और शीथ ब्लाइट (चरपा) जैसे रोग तेजी से फैल सकते हैं।
उप संचालक कृषि आशुतोष श्रीवास्तव ने किसानों से अपील की है कि वे समय पर दवा छिड़काव और खेतों की उचित देखरेख से नुकसान को रोकें।

मुख्य कीट और उनके बचाव के उपाय*

  1. भूरा माहू**

गभोट और बाली की अवस्था में यह कीट पौधों का रस चूसकर फसल को कमजोर कर देता है।

नियंत्रण उपाय: ब्युपरोफेजीन 25% एस.सी. – 800 मि.ली. प्रति हेक्टेयर। वैकल्पिक रूप से पाइमट्रोजिन 50 डब्ल्यू.जी. – 300 ग्राम या ट्राईफ्लूमिथोपाइरम 10% एस.सी. – 235 मि.ली./हे. का छिड़काव करें। खेत में दो दिन पानी भरकर 2-3 दिन के अंतराल पर निकासी करने से कीट की बढ़वार कम की जा सकती है।

  1. पेनिकल माइट (लाल मकड़ी)

धान में बाली निकलने से लेकर मिल्किंग अवस्था तक यह कीट दानों का रस चूस लेता है जिससे बालियों में दाने नहीं बनते

नियंत्रण उपाय:

इथियोन 50% ई.सी. – 400-500 मि.ली. प्रति एकड़
या
इमामेक्टिन बेंजोएट – 80-100 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

3. गंधी बग*

यह कीट बालियों में दूध भरने की अवस्था में रस चूसकर दाने काले कर देता है।

नियंत्रण उपाय:

इमिडाक्लोपिरिड 6% + लैम्डासाइहेलोथ्रिन 4% (एस.एल.) – 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।

मुख्य रोग और उनके नियंत्रण के उपाय*

1. शीथ ब्लाइट (चरपा)*

यह रोग धान में कंसे निकलने से लेकर गभोट अवस्था तक दिखाई देता है। पत्तियों पर भूरे से बदरंगे धब्बे बनने लगते हैं जो ऊपर की ओर फैलकर पौधे को झुलसा देते हैं।

नियंत्रण उपाय:*

हेक्साकोनाजोल कवकनाशी – 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
थायोफ्लूजामाइड का छिड़काव 10-12 दिन के अंतराल पर दोहराएं।

कृषि विभाग की अपील

कृषि विभाग ने किसानों से आग्रह किया है कि वे फसल की नियमित निगरानी करें, खेतों में जलभराव न होने दें, और समय पर अनुशंसित दवाओं का छिड़काव करें ताकि नुकसान से बचा जा सके।

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