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सारंगढ़ का गौरवशाली इतिहास : राजाओं के समय से चली गढ़ विच्छेदन की परंपरा,पढ़े पूरी खबर,,,

सदियों पुरानी परंपरा : सारंगढ़ में दशहरा पर होगा गढ़ विच्छेदन*

सारंगढ़। नवरात्रि का पावन पर्व अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। क्वार माह में नौ दिनों तक श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की। आज नवमी पर मां सिद्धिदात्री की आराधना के साथ पूरे नगर में भक्ति और उत्साह का वातावरण बना रहा। अब दशमी यानी विजयादशमी का इंतजार है। जहां देशभर में रावण दहन की तैयारी है, वहीं छत्तीसगढ़ का सारंगढ़ जिला अपनी गढ़ विच्छेदन की अनूठी परंपरा के लिए पूरे प्रदेश में विख्यात है।

माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से मिलता है मनोवांछित फल

गढ़ विच्छेदन : वीरता और परंपरा का संगम*

सारंगढ़ का गढ़ विच्छेदन कोई साधारण आयोजन नहीं, बल्कि यह सदियों पुरानी परंपरा है। कहते हैं कि पुराने समय में राजा के सैनिक मिट्टी से बने एक ऊंचे टीले (गढ़) पर कब्जा जमाकर खड़े रहते थे। नीचे आमजन और प्रतिभागी उस गढ़ पर चढ़ने की कोशिश करते थे। जो व्यक्ति साहस और बलपूर्वक गढ़ पर विजय प्राप्त कर लेता था, उसे राजा की ओर से सम्मानित कर उपहार दिए जाते थे। इस परंपरा को आज भी उसी उत्साह के साथ निभाया जाता है।

भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से माता रानी की आराधना में लीन होकर पूजा-पाठ कर रहे हैं।

मिट्टी का टीला बनता है केंद्र

दशहरे की सुबह से ही नगर के लोग पारंपरिक वेशभूषा में सज-धजकर मैदान में जुट जाते हैं। मिट्टी का बना ऊंचा टीला इस आयोजन का केंद्र होता है। चारों ओर सिपाही जैसी वेशभूषा में लोग खड़े रहते हैं और प्रतिभागियों को रोकने का प्रयास करते हैं। इस बीच दर्शकों की भीड़ तालियों और जयकारों से उत्साह बढ़ाती है। जब कोई प्रतिभागी सिपाहियों को मात देकर गढ़ पर चढ़ने में सफल होता है, तो वहां जय-जयकार गूंज उठती है।

इतिहास से जुड़ी मान्यता

स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि गढ़ विच्छेदन की परंपरा की शुरुआत रियासतकाल से हुई थी। उस दौर में राजा सारंगढ़ के सैनिकों की शक्ति की परीक्षा इसी तरह ली जाती थी। साथ ही जनता के बीच साहस और वीरता का संचार करने के लिए यह परंपरा स्थापित हुई। धीरे-धीरे यह दशहरे का अभिन्न हिस्सा बन गई और आज भी उसी गर्व और आस्था के साथ निभाई जाती है।

सांस्कृतिक आयोजन और नवा खाय की परंपरा


गढ़ विच्छेदन के साथ ही सारंगढ़ में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी धूम रहती है। रामलीला मंचन, भजन-कीर्तन, लोकनृत्य और झांकी आकर्षण का केंद्र बनते हैं। दूर-दराज के ग्रामीण भी अपने परिवारों के साथ इस आयोजन को देखने आते हैं। नगर में मेले जैसा माहौल बन जाता है और दुकानों पर भीड़ उमड़ पड़ती है।
इसी दिन घर-घर में “नवा खाय” की परंपरा भी निभाई जाती है। नए धान से चावल बनाकर उसका रोटी (बिना नमक का) और खीचीड़ी तैयार की जाती है। फिर इसे कोहड़ा पान में सजाकर घर के देवी-देवताओं को भोग अर्पित किया जाता है। इसके बाद पूरा परिवार मिलकर इस प्रसाद का सेवन करता है। यह परंपरा नई फसल के प्रति आभार और समृद्धि की मंगलकामना का प्रतीक मानी जाती है।

तैयारियां पूरी, उमड़ेगी भीड़

कल होने वाले गढ़ विच्छेदन को लेकर प्रशासन और आयोजकों ने पूरी तैयारी कर ली है। सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस बल तैनात रहेगा। स्थानीय कलाकारों की टोली सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेगी। नगरवासियों में खासा उत्साह है और अनुमान है कि हजारों की भीड़ इस ऐतिहासिक आयोजन की साक्षी बनेगी।

सारंगढ़ की पहचान बनी परंपरा

गढ़ विच्छेदन केवल एक खेल या प्रतियोगिता नहीं, बल्कि सारंगढ़ की पहचान है। यह परंपरा न सिर्फ साहस और पराक्रम की झलक दिखाती है, बल्कि यह साबित करती है कि सांस्कृतिक विरासत कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहती है। दशहरा के दिन जब अन्य जगह रावण दहन होता है, तो सारंगढ़ का गढ़ विच्छेदन इसे विशेष और अनोखा बना देता है

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